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5 वर्षीय जैन बालिका का अद्भुत तप, 24 घंटे सिर्फ पानी पर किया उपवास, समाज में मनाया उत्सव



अजय त्यागी 2024-09-09 10:46:56 स्थानीय

नन्ही बालिका, सोना बोथरा
नन्ही बालिका, सोना बोथरा

मन को साधना और तपस्या करना केवल उम्र से नहीं, बल्कि आत्मबल और विश्वास से मापा जाता है। बीकानेर के गंगाशहर में एक पांच वर्षीय जैन बालिका ने जिस प्रकार से तपस्या और त्याग का प्रदर्शन किया, वह न केवल स्थानीय समाज बल्कि पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। पर्युषण पर्व के अंतिम दिन, जब क्षमापना दिवस की पवित्रता का पर्व मनाया जा रहा था, उसी दौरान इस बालिका ने 24 घंटे का उपवास रखकर अद्वितीय साहस और भक्ति का परिचय दिया। यह अनूठी घटना किसी प्रेरणादायक कहानी से कम नहीं है।

बीकानेर में क्षमापना दिवस की धूम
बीकानेर में जैन धर्मावलंबियों द्वारा पर्युषण पर्व का अंतिम दिन बड़ी श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया गया। इसे क्षमापना दिवस के रूप में भी जाना जाता है, जहां लोग अपने अंदर के नकारात्मक भावों को क्षमा कर दूसरों से क्षमायाचना करते हैं। जैन धर्म में इस पर्व का अत्यधिक महत्व है, और समाज के सभी वर्ग इस दिन को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। बीकानेर के गंगाशहर में भी जैन समाज के लोगों ने इस पर्व को विशेष रूप से मनाया, जहां एक 5 वर्षीय बालिका के तप ने सभी को चौंका दिया।

5 वर्षीय सोना बोथरा की अद्वितीय तपस्या
गंगाशहर की एक नन्ही बालिका, सोना बोथरा ने 24 घंटे का उपवास कर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस बालिका की उम्र भले ही कम हो, लेकिन उसकी तपस्या ने बड़ों को भी हैरान कर दिया। सोना ने सिर्फ पानी पर रहकर 24 घंटे का उपवास रखा, जो जैन धर्म में एक अत्यंत कठिन तपस्या मानी जाती है। इसे जैन समाज में विशेष रूप से सराहा गया और बालिका को समाज के धर्मगुरुओं द्वारा आशीर्वाद भी दिया गया।

बालिका के उपवास पर परिवार और समाज में उत्सव
सोना बोथरा के इस महान तप के उपलक्ष्य में परिवार ने उत्सव का आयोजन किया। मार्बल व्यवसायी राजेन्द्र बोथरा, जो सोना के दादा हैं, ने इस अवसर को खास बनाने के लिए परिवार और समाज के लोगों को आमंत्रित किया। उत्सव के दौरान धर्मगुरुओं ने बालिका को आशीर्वाद दिया और उसकी इस असाधारण उपलब्धि को सराहा। राजेन्द्र बोथरा ने कहा कि यह उनकी पोती के अद्भुत साहस और भक्ति का प्रतीक है, जो पूरे परिवार के लिए गर्व का क्षण है।

पर्युषण पर्व का महत्व और सोना की प्रेरणादायक कहानी
पर्युषण पर्व जैन धर्म का सबसे प्रमुख और पवित्र पर्व माना जाता है, जिसमें तपस्या, त्याग और क्षमा का संदेश दिया जाता है। इस पर्व के दौरान जैन अनुयायी उपवास करते हैं, ध्यान करते हैं और आत्मशुद्धि के मार्ग पर चलते हैं। इस पर्व का अंतिम दिन क्षमापना दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें लोग अपने द्वारा की गई गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं और दूसरों को भी क्षमा करते हैं। सोना बोथरा का उपवास इस पर्व के महत्व को और भी बढ़ा देता है, और उसकी तपस्या ने समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरणा दी है कि तपस्या और त्याग उम्र से नहीं, बल्कि आस्था और आत्मबल से की जाती है।

समाज के धर्मगुरुओं का आशीर्वाद
सोना की तपस्या के बाद, गंगाशहर के जैन धर्मगुरुओं ने उसे आशीर्वाद दिया और उसकी भक्ति को समाज के लिए प्रेरणास्रोत बताया। उन्होंने कहा कि इस बालिका ने जिस प्रकार से मन को साधा है, वह सभी के लिए अनुकरणीय है। धर्मगुरुओं का मानना है कि सोना बोथरा का यह उपवास आने वाली पीढ़ी के लिए एक मिसाल है और समाज को इससे प्रेरणा लेकर अपने जीवन में आत्मसंयम और तप का पालन करना चाहिए।

बालिका का साहस और भक्ति का संदेश
सोना बोथरा की यह तपस्या केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं थी, बल्कि यह एक संदेश है कि कठिन परिस्थितियों में भी संयम और आत्मबल के साथ हम अपनी इच्छाओं और आंतरिक चुनौतियों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इस 5 वर्षीय बालिका ने यह साबित कर दिया कि सच्ची तपस्या करने के लिए उम्र की नहीं, बल्कि आस्था और आत्मविश्वास की जरूरत होती है।

स्थानीय समाज में उत्सव की धूम
सोना की तपस्या के बाद उसके परिवार ने गंगाशहर में उत्सव का आयोजन किया, जिसमें स्थानीय समाज के लोग भी शामिल हुए। इस दौरान सभी ने बालिका की सराहना की और उसे बधाइयां दीं। समाज के अन्य लोगों ने भी इस उत्सव में शामिल होकर सोना की उपलब्धि का जश्न मनाया। बालिका के परिवार ने इस अवसर को यादगार बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया, जिसमें जैन धर्मगुरुओं ने प्रवचन दिए और समाज को आत्मसंयम का महत्व समझाया।

परिवार की खुशी और गर्व
सोना के दादा राजेन्द्र बोथरा ने कहा कि यह उनकी पोती के आत्मविश्वास और भक्ति का परिणाम है, जिसने पूरे परिवार को गर्व महसूस कराया है। उन्होंने कहा कि सोना ने न केवल परिवार का नाम रोशन किया है, बल्कि समाज में भी एक नई प्रेरणा दी है। परिवार ने इस अवसर को विशेष बनाने के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया और समाज के अन्य सदस्यों को भी इस प्रेरक घटना से सीख लेने का संदेश दिया।

उपवास की कठिनाई और बालिका का धैर्य
सोना बोथरा का 24 घंटे का उपवास कोई साधारण बात नहीं थी। यह तपस्या शारीरिक और मानसिक धैर्य की परीक्षा होती है, जिसमें केवल पानी पर रहकर दिन और रात बिताना पड़ता है। बालिका ने इस कठिनाई का सामना धैर्य और संयम के साथ किया, और उसकी इस उपलब्धि को समाज में एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है। जैन धर्म में इस प्रकार की तपस्याओं को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे आत्मशुद्धि का एक साधन माना जाता है।

समाज के अन्य लोगों के लिए प्रेरणा
सोना बोथरा की इस तपस्या ने समाज के अन्य लोगों को भी प्रेरित किया है। इस बालिका ने यह साबित कर दिया कि आत्मबल और विश्वास के साथ किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। समाज के अन्य सदस्य भी उसकी इस उपलब्धि से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में तप और त्याग का पालन करने का संकल्प ले रहे हैं। यह घटना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणादायक संदेश है।



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