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अब आर पार की लड़ाई! एंटी नक्सल ऑपरेशन: CRPF के 4000 जवान नक्सलगढ़ में पहुंचे



अजय त्यागी 2024-09-10 06:59:55 छत्तीसगढ

अब आर पार की लड़ाई
अब आर पार की लड़ाई

नक्सलवाद के खात्मे और बस्तर तक विकास को पहुंचाने के लिए सरकार ने कमर कस ली है। बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में सीआरपीएफ की चार बटालियन अब नए सिरे से मोर्चा संभालने को तैयार है। इन चार बटालियन में कुल 4000 जवान शामिल हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने बीते दिनों ही बयान दिया था कि साल 2026 तक हम बस्तर से नक्सलवाद का खात्मा कर देंगे। बस्तर आईजी सुंदरराज पी ने कहा कि जिन जवानों की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है उनको बस्तर भेजा गया है। जिनकी ट्रेनिंग बाकी है उनको बाद में भेजा जाएगा। गृहमंत्रालय से जो आदेश आएगा उसे फॉलो किया जाएगा।

सीआरपीएफ के 4000 जवान पहुंचे नक्सलगढ़: 
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले महीने छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में नक्सलियों के खात्मे पर बड़ा बयान दिया था। शाह ने इस बात पर जोर दिया था कि देश को वामपंथी उग्रवाद से मुक्त करने के लिए एक मजबूत और निर्मम कार्य योजना पर काम करने जा रहे हैं।

हम बड़ा लक्ष्य लेकर चल रहे हैं। केंद्रीय गृहमंत्री ने जो रणनीति बताई है उसके लिए हम लोग काम कर रहे हैं। एरिया डोमिनेशन के लिए जो भी संभव होगा वो किया जाएगा। नक्सल मोर्चे पर हमें बड़ी सफलता मिलने वाली है। हम तय समय पर नक्सलवाद का खात्मा करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं- विजय शर्मा, गृहमंत्री, छत्तीसगढ़

अब होगी आर पार की लड़ाई: 
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल देश में प्रमुख आंतरिक सुरक्षा और नक्सल विरोधी अभियान बल ने रायपुर से लगभग 450-500 किलोमीटर दक्षिण में बस्तर क्षेत्र में तैनाती के लिए झारखंड से तीन बटालियन और बिहार से एक बटालियन वापस बुलाई है। सूत्रों की मानें तो इन बटालियनों का बेहतर उपयोग छत्तीसगढ़ में किया जा सकता है, जहां अब नक्सल विरोधी अभियान केंद्रित है।

चार बटालियन संभालेंगी नक्सलगढ़ में मोर्चा: 
सूत्रों ने बताया कि छत्तीसगढ़ के वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र में मौजूदा बल में और ताकत जोड़ने के लिए सीआरपीएफ की 159, 218, 214 और 22 बटालियनों को तैनात किया जा रहा है। सीआरपीएफ की हर बटालियन में करीब 1,000 जवान शामिल होंगे।

रेड जोन में होगी तैनाती: 
सूत्रों की मानें तो जवानों को दंतेवाड़ा और सुकमा के दूरदराज के जिलों और ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साथ राज्य की त्रिकोणीय सीमा पर तैनात किया जा रहा है। सूत्रों का कहना है कि बटालियनें सीआरपीएफ की कोबरा इकाइयों के साथ मिलकर जिलों के दूरदराज के इलाकों में और अधिक अग्रिम परिचालन अड्डे स्थापित करेंगी ताकि क्षेत्र को सुरक्षित करने के बाद विकास शुरू किया जा सके।

बदलेगी तस्वीर: 
पिछले तीन वर्षों में छत्तीसगढ़ में करीब 40 एफओबी बनाए हैं। ऐसे अड्डे स्थापित करने में अपनी तरह की चुनौतियां आती हैं। एफओबी में बख्तरबंद वाहनों, यूएवी (मानव रहित हवाई वाहन), डॉग स्क्वॉड, संचार सेट और राशन आपूर्ति के माध्यम से रसद सहायता प्रदान की जा रही है।

संसाधनों को किया जाएगा और दुरुस्त: 
सीआरपीएफ के अधिकारी बताते हैं कि इन इकाइयों और उन्हें सहायता देने वाली अन्य सीआरपीएफ बटालियनों को लगातार तकनीक, हेलीकॉप्टर और संसाधन सहायता की आवश्यकता होगी। दक्षिण बस्तर नक्सल विरोधी अभियानों के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है।

सीआरपीएफ सहित सुरक्षा बलों को बस्तर क्षेत्र में सबसे अधिक हताहतों का सामना करना पड़ा है। अब किए गए निर्णायक अभियान यह सुनिश्चित करेंगे कि नक्सल समस्या यहाँ से हमेशा के लिए जड़ से खत्म हो जाए। प्रौद्योगिकी और संचार सुविधाओं के अलावा सड़कों और हेलीपैड के निर्माण जैसे रसद समर्थन की लगातार आवश्यकता होगी ताकि नई इकाइयाँ बिना किसी हताहत के क्षेत्र को संभाल सकें- अधिकारी, सीआरपीएफ

अगर केंद्र की समय सीमा को पूरा करना है तो उच्च कमान और राज्य सरकार को उनकी आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी होना होगा- पूर्व अफसर, सीआरपीएफ

आखिरी वार की पूरी तैयारी: 
बीते दिनों हुई एक बैठक में सीआरपीएफ के शीर्ष अधिकारियों ने अपने फील्ड कमांडरों को इस बात पर जोर दिया कि वामपंथी उग्रवाद के ताबूत में आखिरी कील देश के सबसे बड़े बल, सीआरपीएफ को ही ठोकनी चाहिए, क्योंकि सीआरपीएफ के पास करीब 3.25 लाख जवान हैं। 

छत्तीसगढ़ में 40 बटालियन की तैनाती: 
छत्तीसगढ़ में 40 बटालियन (जिनमें चार नई बटालियन भी शामिल हैं) तैनात की हैं। साथ ही कोबरा के जवान भी तैनात किए हैं जो कि इसका विशेष जंगल युद्ध बल है। राज्य में माओवाद विरोधी अभियानों में हत्याओं में हाल के दिनों में तेजी देखी गई है और इस साल सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में 153 नक्सली मारे गए हैं।

क्या बोले थे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह: 
शाह ने 24 अगस्त को रायपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा था कि 2004-14 की तुलना में 2014-24 के दौरान देश में नक्सली हिंसा की घटनाओं में 53 प्रतिशत की कमी आई। 2004-14 में नक्सली हिंसा की 16,274 घटनाएं दर्ज की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के दौरान अगले दशक में यह 53 प्रतिशत घटकर 7,696 रह गया। इसी तरह, देश में माओवादी हिंसा के कारण होने वाली मौतों की संख्या में भी 2004-14 में 6,568 से 2014-24 में 1,990 तक की कमी दर्ज की गई।



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