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ईद-ए-मिलाद-उन-नबी पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का भव्य श्रृंगार, पैगंबर मोहम्मद के जन्मदिन की खुशी में उमड़ा जनसैलाब



अजय त्यागी 2024-09-16 10:59:25 आध्यात्मिक

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का भव्य श्रृंगार - Photo : IANS
ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का भव्य श्रृंगार - Photo : IANS
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आज का दिन इस्लाम धर्म के मानने वालों के लिए बेहद खास है। दुनिया भर के मुसलमान पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिवस को मनाने के लिए एकजुट हुए हैं। क्या आप जानते हैं कि इस्लाम में पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की तस्वीर क्यों नहीं बनाई जाती और अजमेर शरीफ की दरगाह को इस खास मौके पर कैसे सजाया गया है? आइए, जानते हैं इस पर्व से जुड़ी हर खास बात!

मानवता की सेवा के लिए प्रेरणा का दिन 
इस्लाम धर्म के अनुयायियों के लिए आज का दिन बेहद अहम और पवित्र है, क्योंकि आज ईद-ए-मिलाद-उन-नबी है। यह पर्व इस्लाम धर्म के अंतिम पैगंबर, हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इसे ईद-ए-मिलाद-उन-नबी या ईद-ए-मिलाद के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन का महत्व इस्लामिक कैलेंडर के तीसरे महीने रबी-अल-अव्वल की 12वीं तारीख को होता है। इस दिन दुनिया भर के मुसलमान मस्जिदों और दरगाहों में जाकर पैगंबर मोहम्मद साहब के संदेशों को याद करते हैं और मानवता की सेवा के लिए प्रेरित होते हैं।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भव्य सजावट:
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के इस खास मौके पर अजमेर शरीफ स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह को रंग-बिरंगी लाइटों और फूलों से सजाया गया है। दरगाह की इस भव्य सजावट ने श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित किया है, और हजारों की संख्या में लोग यहां पहुंच रहे हैं। रात के अंधेरे में जगमगाती दरगाह मानो आसमान के तारों जैसी चमक उठी, जहां हर कोई पैगंबर मोहम्मद साहब के नाम पर इबादत कर रहा है और अमन-चैन की दुआएं मांग रहा है।

पैगंबर मोहम्मद का जीवन और संदेश:
570 ईस्वी में अरब के रेगिस्तान मक्का में जन्मे पैगंबर मोहम्मद साहब का जीवन संघर्षों और मानवीय मूल्यों से भरा हुआ था। उनके जन्म से पहले ही उनके पिता का देहांत हो गया था, और मात्र 6 साल की उम्र में उनकी मां का भी निधन हो गया। इसके बाद उन्होंने अपने चाचा अबू तालिब और दादा अबू मुतालिब के संरक्षण में जीवन व्यतीत किया। उनके पिता का नाम अब्दुल्लाह और माता का नाम बीबी आमिना था। पैगंबर मोहम्मद साहब ने पूरी मानवता को एकता, दया और भाईचारे का संदेश दिया, जो आज भी इस्लाम धर्म की बुनियाद मानी जाती है।

पैगंबर मोहम्मद की तस्वीर क्यों नहीं?
इस्लाम धर्म में पैगंबर मोहम्मद साहब की तस्वीर या मूर्ति क्यों नहीं बनाई जाती, यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है। इस्लाम में बुतपरस्ती यानी मूर्ति पूजा के खिलाफ सख्त नियम हैं। इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार, अल्लाह और उसके पैगंबर को किसी भी छवि या मूर्ति के रूप में नहीं दर्शाया जा सकता। पैगंबर साहब की शिक्षा के अनुसार, इंसान का काम अपने कार्यों से खुद को साबित करना है, न कि उसकी तस्वीर से। जानकारों की मानें तो कुरान के 42वीं सूरे की 42 नंबर आयत में कहा गया है कि अल्लाह ने ही धरती और स्वर्ग बनाए हैं, तो उसे कोई इंसान तस्वीर में कैसे उतार सकता है। इसी कारण इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद साहब की कोई तस्वीर या चित्रण नहीं किया जाता है।

समाजसेवा और मानवता का संदेश:
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का दिन न केवल पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं को याद करने का दिन है, बल्कि यह समाजसेवा और मानवता की सेवा के लिए भी प्रेरित करता है। इस दिन, मुस्लिम समुदाय गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए विशेष रूप से प्रेरित होता है। मस्जिदों और दरगाहों में विशेष दुआओं का आयोजन होता है, जहां सभी लोग एकजुट होकर अमन और शांति की दुआ मांगते हैं।

समारोह और उत्सव:
ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के अवसर पर जगह-जगह जुलूस भी निकाले जाते हैं। लोग अपने घरों और मस्जिदों को सजाते हैं और पूरे जोश के साथ इस दिन को मनाते हैं। खासकर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु जमा होकर इस पर्व को पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं।

ईद-ए-मिलाद-उन-नबी का यह खास दिन पैगंबर मोहम्मद साहब के जीवन और उनकी शिक्षाओं को याद करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। उनका संदेश आज भी दुनिया भर में अमन, भाईचारा और इंसानियत की मिसाल बना हुआ है।

अस्वीकरण (Disclaimer):
इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है और इसका मकसद किसी भी धर्म, जाति, या धार्मिक आस्था का अनादर या अपमान करना नहीं है। लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों और धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। पाठकों से अनुरोध है कि अपने व्यक्तिगत विश्वासों और धार्मिक परंपराओं का सम्मान करें। यदि लेख में कोई त्रुटि हो तो इसके लिए हम खेद प्रकट करते हैं।