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केवल कड़े कानून नहीं बना सकते न्यायपूर्ण समाज, मानसिकता में बदलाव जरूरी- सीजेआई चंद्रचूड़



अजय त्यागी 2024-09-16 09:55:35 दिल्ली

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ - File Photo : Internet
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ - File Photo : Internet

क्या सिर्फ कानूनों के दम पर महिलाओं के लिए एक न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो सकता है? देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का मानना है कि नहीं। महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए केवल कड़े कानून पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि समाज की मानसिकता में बदलाव की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा कि पितृसत्तात्मक सोच को बदलने से ही महिलाओं को उनके स्वतंत्र और समान जीवन जीने का अधिकार मिल सकेगा। जानिए मुख्य न्यायाधीश के विचारों की गहराई और कैसे यह समाज की सोच को चुनौती देता है।

कड़े कानून पर्याप्त नहीं, मानसिकता बदलने की जरूरत: सीजेआई चंद्रचूड़
देश के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण बयान दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए हमारे पास पर्याप्त कानून हैं, लेकिन कानूनों से ही न्यायपूर्ण समाज नहीं बनाया जा सकता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए समाज की मानसिकता में बदलाव जरूरी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि महिलाओं को कानूनी सुरक्षा देने के अलावा, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि समाज की सोच महिलाओं की स्वतंत्रता और समानता को पहचानने वाली हो। पितृसत्तात्मक सोच को त्यागकर महिलाओं के अधिकारों को समान रूप से सम्मान देना आवश्यक है।

समाज में महिलाओं के अधिकारों की पहचान जरूरी
सीजेआई चंद्रचूड़ ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि महिलाओं के अधिकारों के बारे में बात करना सिर्फ महिलाओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह समाज के सभी वर्गों से जुड़ा विषय है। उन्होंने कहा कि महिलाओं के लिए सम्मान और समानता का वातावरण तैयार करना हम सभी की जिम्मेदारी है। मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि उन्होंने जीवन के कुछ महान सबक अपनी महिला सहकर्मियों से सीखे हैं, जो यह दर्शाता है कि महिलाओं की भागीदारी न केवल जरूरी है, बल्कि समाज को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

महिला जीवन चार्टर और भारतीय संविधान
सीजेआई ने भारतीय संविधान की चर्चा करते हुए बताया कि इससे पहले "भारतीय महिला जीवन चार्टर" का मसौदा तैयार किया गया था, जिसे प्रमुख नारीवादी हंसा मेहता ने तैयार किया था। यह चार्टर महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता की महत्वपूर्ण पहल करता है। उन्होंने यह भी कहा कि बेहतर समाज के निर्माण के लिए महिलाओं की समान भागीदारी महत्वपूर्ण है। हंसा मेहता के योगदान को याद करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उनके प्रयासों ने भारतीय संविधान में महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करने में अहम भूमिका निभाई है।

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की संस्कृति को बढ़ावा देने की अपील
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह समय है जब भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता की संस्कृति को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाए। इससे देश में विवाद समाधान के लिए घरेलू अदालतों से परे एक कुशल और निष्पक्ष वातावरण तैयार किया जा सकेगा। मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि कानून के शासन के प्रति सम्मान, निष्पक्षता और पूर्वानुमान को बढ़ावा देता है, जो देश में निवेशकों के लिए एक अनुकूल वातावरण तैयार करने में मदद करता है। विवादों का कुशलता से हल किया जाना आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है।

महिलाओं के लिए सुरक्षात्मक कानूनों के साथ स्वतंत्रता का भी सम्मान
सीजेआई ने इस बात पर भी ध्यान केंद्रित किया कि हमें महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों का सम्मान करना चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि इन कानूनों से उनकी स्वतंत्रता और विकल्पों का उल्लंघन न हो। उन्होंने कहा कि महिलाओं के जीवन में सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमें महिलाओं के प्रति सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से हटकर उनके अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान करना चाहिए।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने विचारों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि समाज की सोच और मानसिकता में बदलाव के बिना एक न्यायपूर्ण व्यवस्था का निर्माण संभव नहीं है। कानूनों की सख्ती जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि हम महिलाओं के अधिकारों का सम्मान करें और उनकी स्वतंत्रता को पहचानें।



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