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कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी पर बॉम्बे हाई कोर्ट सख्त: CBFC को सर्टिफिकेट जारी करने का आदेश



अजय त्यागी 2024-09-19 12:50:25 सिने जगत

प्रतीकात्मक फोटो : Internet
प्रतीकात्मक फोटो : Internet
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बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज अभिनेता-सांसद कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी की रिलीज पर हो रही आपत्तियों के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को बुधवार तक फैसला लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि फिल्मों की रिलीज़ पर आपत्ति जताने का चलन अब बंद होना चाहिए और CBFC को जल्द से जल्द इस मुद्दे पर निर्णय लेना चाहिए। फिल्म इमरजेंसी को लेकर सिख संगठनों ने आपत्ति जताई है, जिनका कहना है कि फिल्म में समुदाय की गलत छवि दिखाई गई है।

अदालत का कड़ा रुख: फिल्मों की रिलीज़ पर आपत्ति का चलन बंद हो
बॉम्बे हाई कोर्ट ने अपने सख्त रुख में कहा कि फिल्मों की रिलीज पर आपत्ति जताने का ट्रेंड अब खत्म होना चाहिए। अदालत ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) को कंगना रनौत की फिल्म इमरजेंसी पर फैसला लेने के लिए बुधवार तक का समय दिया है। यह याचिका फिल्म के सह-निर्माता ज़ी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज ने दायर की थी, जिसमें सेंसर प्रमाणपत्र जारी करने की मांग की गई थी ताकि फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज़ हो सके।

सिख संगठनों की आपत्ति और सरकार की राय
फिल्म इमरजेंसी, जो 1975 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा लगाए गए आपातकाल पर आधारित है, विवादों में घिर गई है। सिख संगठनों ने आरोप लगाया है कि फिल्म में उनके समुदाय की गलत छवि पेश की गई है। सरकार के सूत्रों के अनुसार, फिल्म में कुछ संवेदनशील सामग्री है, जिसे लेकर चिंता जताई गई है।

सेंसर बोर्ड के वकील का तर्क: फिल्म में विवादास्पद सामग्री
सेंसर बोर्ड के वकील, अभिनव चंद्रचूड़ ने अदालत में बताया कि फिल्म के रिलीज़ के खिलाफ प्रस्तुतियों के आधार पर निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि फिल्म के कुछ दृश्यों में एक ध्रुवीकृत व्यक्ति को राजनीतिक पार्टियों के साथ सौदा करते हुए दिखाया गया है, और इस बात की जांच की जा रही है कि यह तथ्यात्मक रूप से सही है या नहीं। न्यायमूर्ति बीपी कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनावाला की पीठ के समक्ष उन्होंने यह तर्क रखा।

हाई कोर्ट का सवाल: रचनात्मक स्वतंत्रता और जनता की समझ
न्यायमूर्ति कोलाबावाला ने कहा कि इमरजेंसी एक फिल्म है, न कि एक डॉक्यूमेंट्री। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या आपको लगता है कि जनता इतनी भोली है कि वे जो कुछ भी फिल्म में देखेंगे, उस पर विश्वास कर लेंगे? रचनात्मक स्वतंत्रता का क्या? यह CBFC का काम नहीं है कि वह यह तय करे कि इससे सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित होगी या नहीं।

CBFC का समय मांगना और अदालत का सख्त जवाब
CBFC ने इस मामले को पुनरीक्षण समिति के पास भेजने की बात कही और दो हफ्ते का समय मांगा। लेकिन अदालत ने यह मांग खारिज कर दी। अदालत ने कहा कि आपके पास या तो प्रमाणपत्र देने या इसे अस्वीकार करने का काफी समय था, लेकिन आपने सिर्फ जिम्मेदारी को दूसरी समिति पर डाल दिया। अब आप सोमवार तक तय करें कि आप फिल्म रिलीज करेंगे या नहीं।