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कोलकाता में विरोध का सैलाब: डॉक्टरों का प्रदर्शन और सुप्रीम कोर्ट की फटकार ने ममता सरकार को हिला दिया



अजय त्यागी 2024-10-15 11:15:54 पश्चिम बंगाल

कोलकाता में विरोध का सैलाब
कोलकाता में विरोध का सैलाब
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कोलकाता की सड़कों पर विरोध की आग भड़क उठी, जब डॉक्टरों के गुस्से और नागरिक समाज की आवाज़ों ने ममता बनर्जी सरकार को दोहरे झटके दिए। वहीं दूसरी तरफ, सुप्रीम कोर्ट ने ममता सरकार के पुलिस भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े किए, जिससे दुर्गा पूजा कार्निवल का उत्साह फीका पड़ गया। जानें कैसे न्यायपालिका और प्रदर्शनकारियों के दोहरे प्रहार ने ममता सरकार को एक मुश्किल स्थिति में ला खड़ा किया।

विस्तृत रिपोर्ट:
ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार को मंगलवार को दो प्रमुख मोर्चों पर करारा झटका लगा। एक तरफ, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में पुलिस तंत्र में सिविक वालंटियर्स की भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए। वहीं दूसरी ओर, कोलकाता की सड़कों पर जूनियर डॉक्टरों, नागरिक समाज, वरिष्ठ चिकित्सकों और आम लोगों के विरोध ने दुर्गा पूजा के कार्निवल की चमक को फीका कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट की फटकार: सिविक वालंटियर्स की भर्ती पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की सिविक वालंटियर्स भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाए, जो ममता सरकार के 2011 में सत्ता में आने के बाद शुरू की गई थी। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आखिर किस आधार पर इन वालंटियर्स की भर्ती की जा रही है और क्या प्रक्रिया पारदर्शी है। यह फैसला राज्य के पुलिस विभाग में इन सिविक वालंटियर्स की भूमिका और उनकी नियुक्तियों की वैधता पर सवाल खड़ा करता है।

काली पूजा कार्निवल पर विवाद: पुलिस के आदेश पर हाई कोर्ट की टिप्पणी
दूसरी तरफ, कोलकाता पुलिस ने दुर्गा पूजा विसर्जन कार्निवल के दौरान कई इलाकों में धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू की थी। यह आदेश रेड रोड के पास पांच से अधिक लोगों के एकत्रित होने पर प्रतिबंध लगाता था। पुलिस ने कानून और व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से यह आदेश जारी किया था, जिससे कार्निवल के दौरान किसी अप्रिय घटना की आशंका कम हो।

हालांकि, कलकत्ता हाई कोर्ट ने इस आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि यह आंदोलनकारियों के अधिकारों का हनन है। कोर्ट ने निषेधाज्ञा हटाने का आदेश दिया और सभी सड़कों से बैरिकेड्स को हटा लिया गया। यह आदेश एक बड़ी जीत साबित हुई जूनियर डॉक्टरों के लिए, जो कई दिनों से भूख हड़ताल पर थे और अपने साथी चिकित्सक के साथ हुई दुर्भाग्यपूर्ण घटना के लिए न्याय की मांग कर रहे थे।

डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन और नागरिकों का समर्थन
आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के एक प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या के मामले में राज्य के स्वास्थ्य विभाग में व्यापक अनियमितताओं के खिलाफ विरोध प्रदर्शन तेज हो गया। जूनियर डॉक्टरों के नेतृत्व में हजारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर उतर कर न्याय की मांग की। प्रदर्शन स्थल एस्प्लानेड पर धुनों की गूंज और नारों के बीच माहौल और अधिक गरमा गया जब पुलिस ने बैरिकेड्स हटाने के आदेश का पालन किया।

डॉ. देबाशीष हलदर, जो इस आंदोलन में शामिल थे, ने ममता सरकार पर गंभीर आरोप लगाए और कहा, “मुख्यमंत्री ममता बनर्जी स्वास्थ्य क्षेत्र में जारी समस्याओं से भलीभांति अवगत हैं, लेकिन उनका इस मुद्दे पर चुप रहना दुखद है।” कई अन्य वरिष्ठ डॉक्टर और जूनियर चिकित्सक भी इस प्रदर्शन में भाग लेते रहे, जिसमें उनके हाथों में न्याय की मांग करने वाले बैनर और पोस्टर थे।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रिया
प्रदर्शनकारियों में प्रसिद्ध भाषाविद पवित्र सरकार, अभिनेत्री अपरणा सेन, चैती घोषाल, देबोलिना दत्ता, और अन्य प्रमुख हस्तियों ने भी शामिल होकर इस आंदोलन को समर्थन दिया। इससे कोलकाता के केंद्रीय व्यापारिक क्षेत्र में यातायात बुरी तरह प्रभावित हुआ। वहीं, प्रदर्शन का असर राज्य के अन्य हिस्सों में भी देखा गया, जहां सिलीगुड़ी और बर्दवान में भी विरोध मार्च निकाले गए।

नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने कॉलेज स्ट्रीट पर मशाल जुलूस का नेतृत्व किया, जिसमें सैकड़ों लोग शामिल हुए। उन्होंने कहा, “यह सरकार महिलाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं निभा रही है, जबकि दुर्गा पूजा कार्निवल जैसे आयोजनों पर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।”

संपूर्ण घटनाक्रम का सार
ममता बनर्जी सरकार को डॉक्टरों के प्रदर्शन और सुप्रीम कोर्ट की फटकार से एक बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है। जहां एक तरफ राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ पुलिस तंत्र में पारदर्शिता की कमी पर भी कोर्ट ने ध्यान दिलाया है। जनता का यह गुस्सा सिर्फ स्वास्थ्य क्षेत्र की बदहाली को लेकर नहीं है, बल्कि राज्य में महिलाओं की सुरक्षा और न्यायिक प्रणाली पर भी उभरती हुई आशंकाओं को दर्शाता है।

कोलकाता की सड़कों पर आज का दिन विरोध और न्याय की मांग का रहा। डॉक्टरों और नागरिकों के संयुक्त प्रयास ने राज्य सरकार पर दबाव डाला है, और अब सबकी नजरें इस बात पर हैं कि ममता सरकार इस संकट का समाधान कैसे करेगी।